जिन में कुछ लुत्फ़ और अंदाज़-ए-करम भी कुछ हैं तुम ही इंसाफ़ से कह दो सितम भी कुछ हैं नाज़ तुम को है जफ़ा पर तो वफ़ा पर हम को तुम अगर कुछ हो मिरी जान तो हम भी कुछ हैं उन का ये क़ौल मिरे मरने से क्या होता है मुझ को दा'वा है मिरे दीदा-ए-नम भी कुछ हैं जिस को देखो है वही बंदा-ए-बे-दाम उन का ऐ ख़ुदा तेरी ख़ुदाई में सनम भी कुछ हैं है अभी राह से गुज़रा कोई माना लेकिन बात ही बात है या नक़्श-ए-क़दम भी कुछ हैं चर्ख़ के दौर में यकसाँ नहीं रहता कोई राहतें थीं जिन्हें कल तक उन्हें ग़म भी कुछ हैं तुर्फ़ा-तर है तिरे मक़्तल का तमाशा क़ातिल कुछ तड़पते हैं तह-ए-तेग़-ए-दो-दम भी कुछ हैं ख़ाना-ए-दिल में मिरे दौलत-ए-उल्फ़त के सिवा दाग़-हा-ए-शब-ए-फ़ुर्क़त के दिरम भी कुछ हैं कुछ नहीं कुछ नहीं ऐ हज़रत-ए-'साबिर' वो लोग अपने दिल में जो समझते हैं कि हम भी कुछ हैं