इक-दूजे के बासी उन को और बसेरा क्या मा'लूम अपने-पन के बाशिंदों को मेरा तेरा क्या मा'लूम सूरज बोले तो सो जाएँ सूरज बोले तो जागें क्या जानें ये दिया जलाना उन को अंधेरा क्या मा'लूम ख़्वाब का झूट जीवन सच में तिल तिल मरना जिन का भाग ये रातों के क़ैदी उन को साँझ सवेरा क्या मा'लूम बस्ती से बाहर साँपों ने भी तो कुछ फूँका होगा आधी राह से लौटा हो मेहमान सपेरा क्या मा'लूम बाँधी थीं आशाएँ क्या क्या हम ने अब के मौसम से 'रहमानी' अब कौन सी रुत में फूले बहीरा क्या मा'लूम