पस-ए-यक़ीं कहीं हम भी तिरे गुमान में हैं तिरा निशाँ हैं ये तारे जो आसमान में हैं हरम-सरा था तिरा दिल सो छोड़ आए उसे वगर्ना कहने को अब भी उसी मकान में हैं मिरे नसीब के ख़ुश-रंग ख़्वाब और सराब न इस जहान में थे और न उस जहान में हैं मैं अपने वास्ते इन में से ख़ुद ही चुन लूँगी वो सानेहे जो मयस्सर तिरी दुकान में हैं सराब हैं ये तुम्हारे सब आइना-ख़ाने बसारतें भी न-जाने किस इम्तिहान में हैं कभी वो आइना-ए-चश्म में सँवरते थे वो सारे ख़्वाब निसाबों के जो बयान में हैं न-जाने लाएँगे दिल पर तबाहियाँ क्या क्या वो हादसे जो अभी तक तिरी कमान में हैं ये पुल-सिरात कहाँ ले चला हमें 'अंजुम' न हम ज़मीं के रहे और न आसमान में हैं