वफ़ा-शिआ'रों ने की हैं मोहब्बतें क्या क्या हैं उन के नाम से यारो रिवायतें क्या क्या हम अहल-ए-दर्द जलाते रहे सरों के चराग़ हैं शहर-ए-शब में हमारी हिकायतें क्या क्या ये इज़्तिराब ये नाले ये सोज़िश-ए-पैहम हैं उन की देखिए हम पर इनायतें क्या क्या सुनो कि आज भी हैं ज़ेहन के अजंता में मिरे 'नदीम' मुनक़्क़श वो सूरतें क्या क्या तुझे बहार कहूँ गुल कहूँ कि चाँद कहूँ हैं तेरे हुस्न में प्यारे शबाहतें क्या क्या न छेड़ बीते ज़माने के साज़ ऐ मुतरिब हैं उस की याद से वाबस्ता सोहबतें क्या किया ब-नाम-ए-सब्ज़ा-ख़ताँ मह-विशॉं ख़ुतूत-ओ-पयाम मिरे ख़िलाफ़ वो लाए शहादतें क्या क्या