पसीने पसीने हुए जा रहे हो By Ghazal << मैं उस में अक्स-ए-तलब अपन... ये कर्ब ये तसलसुल-ए-बे-ख़... >> पसीने पसीने हुए जा रहे हो ये बोलो कहाँ से चले आ रहे हो हमें सब्र करने को कह तो रहे हो मगर देख लो ख़ुद ही घबरा रहे हो बुरी किस की तुम को नज़र लग गई है बहारों के मौसम में मुरझा रहे हो ये आईना है ये तो सच ही कहेगा क्यूँ अपनी हक़ीक़त से कतरा रहे हो Share on: