ये कर्ब ये तसलसुल-ए-बे-ख़्वाब शब तो है गोया तुम्हारी याद का कोई सबब तो है अंजाम जो भी हो मिरा इस रज़्म-गाह में मंसूब तेरे नाम से जश्न-ए-तरब तो है सरमाया-ए-हयात मिरे पास कम नहीं ज़ख़्म-ए-जिगर फ़रेब-ए-नज़र दर्द सब तो है मिलने में उज़्र तर्ज़-ए-तकल्लुम बुझा बुझा पहले न थी ये बात मगर ख़ैर अब तो है ऐ बहर-ए-इम्बिसात कि तू ला-ज़वाल है अब भी तिरे क़रीब कोई तिश्ना-लब तो है