पता अब तक नहीं बदला हमारा वही घर है वही क़िस्सा हमारा वही टूटी हुई कश्ती है अपनी वही ठहरा हुआ दरिया हमारा ये मक़्तल भी है और कुंज-ए-अमाँ भी ये दिल ये बे-निशाँ कमरा हमारा किसी जानिब नहीं खुलते दरीचे कहीं जाता नहीं रस्ता हमारा हम अपनी धूप में बैठे हैं 'मुश्ताक़' हमारे साथ है साया हमारा