पता चला कि मिरी ज़िंदगी में लिक्खा था वो जिस का नाम कभी डाइरी में लिक्खा था वो किस क़बीले से है कौन से घराने से सब उस के लहजे की शाइस्तगी में लिक्खा था नज़र में आए बहुत से सजे बने चेहरे मगर जो हुस्न तिरी सादगी में लिक्खा था वो मुझ ग़रीब की हालत पे और क्या कहता तमाम ज़हर तो उस की हँसी में लिक्खा था गए दिनों की कहानी है जब रईसों का वक़ार चाल की आहिस्तगी में लिक्खा था 'फ़राज़' ढूँड रहे हो वफ़ाओं की ख़ुशबू ये ज़ाइक़ा किसी गुज़री सदी में लिक्खा था