पत्थर-दिल को मोम बनाया काफ़िर बुत को राम किया काम तो आख़िर इतना तू ने आज दिल-ए-नाकाम किया एक ने राज़-ए-इश्क़ छुपाया एक ने तश्त-अज़-बाम किया ज़ब्त ने पर्दा-दारी की और अश्कों ने बदनाम किया सिक्का वफ़ा का हम ने बिठाया आप ने जौर-ए-आम किया हम ने अपना काम किया और आप ने अपना काम किया उम्र गुज़ारी रोते-धोते आहें भर मातम करते आप पे मरने वालों ने कब चैन किया आराम किया थाम लिया उस शोख़ का दामन गिरते गिरते मुट्ठी में सदक़े मैं इस लग़्ज़िश पर इस लग़्ज़िश ने क्या काम किया भूल न जाए राह 'मुबारक' उन लोगों की राह चला जिन पर मेरे मौला तू ने फ़ज़्ल किया इनआ'म किया