पत्थरों को सुनाई देता है जो तू ऐसे दुहाई देता है पेट ख़ाली हो गर परिंदों का दाम किस को दिखाई देता है कोई दुश्मन कभी नहीं देता ज़ख़्म जैसा कि भाई देता है मैं ही ख़ुद छोड़ता नहीं हूँ क़फ़स वो तो मुझ को रिहाई देता है ऐसे अब ज़ाविए से बैठा हूँ चारों-जानिब दिखाई देता है सच तो आँखों में पढ़ लिया 'अरशद' यार तू क्यूँ सफ़ाई देता है