पत्तियाँ हो गईं हरी देखो ख़ुद से बाहर भी तो कभी देखो फिर खिली क्या कोई कली देखो शोर है क्यूँ गली गली देखो याद और याद को भुलाने में उम्र की फ़स्ल कट गई देखो मार कोई शिकार पर निकला दश्त में रौशनी हुई देखो रात की राख मुँह पे मल मल कर सुब्ह कितनी सँवर गई देखो सुब्ह की फ़िक्र ब'अद में करना रात कितनी गुज़र गई देखो ज़िंदगी किस तरह तुम्हारी 'निज़ाम' उलझनों से उलझ गई देखो