पाँव जब हो गए पत्थर तो सदा दी उस ने फ़ैसला करने में ख़ुद देर लगा दी उस ने अब जो आँखों में धुआँ है तो शिकायत कैसी यार ख़ुद ही तो चराग़ों को हवा दी उस ने ये अलग बात कि वो मेरा ख़रीदार नहीं आ के बाज़ार की रौनक़ तो बढ़ा दी उस ने कोई शिकवा न शिकायत न वज़ाहत कोई मेज़ से बस मिरी तस्वीर हटा दी उस ने रात ज़ंजीर की आवाज़ जो कुछ तेज़ हुई सुब्ह दीवार पे दीवार उठा दी उस ने सिर्फ़ इक राह अलग थी वो मिरे इश्क़ की राह और वो राह भी दुनिया से मिला दी उस ने मेरे हम-राह ज़रा देर को चल कर 'तारिक़' और कुछ वक़्त की रफ़्तार बढ़ा दी उस ने