पेड़ पर जाने किस का ध्यान पड़ा एक पत्थर कहीं से आन पड़ा एक हिजरत तो मुझ को थी दरपेश हिज्र भी उस के दरमियान पड़ा ये शब-ए-तार-तार मेरी रिदा ये सितारों का साएबान पड़ा एक पलड़े में रख दिया तुझ को दूसरे में था इक जहान पड़ा कैसी ठोकर लगी ये सपने में आँख पर किस का ये निशान पड़ा एक मुट्ठी में फिर ज़मीं सिमटी एक आँसू में आसमान पड़ा ज़िंदगी याद आ गई मुझ को फिर तिरी सम्त मेरा ध्यान पड़ा तू ने नाम-ओ-निशाँ दिया मुझ को मेरा होना था बे-निशान पड़ा गिरते रहते हैं इस में शाम-ओ-सहर भरता रहता है ख़ाक-दान पड़ा ये है कश्ती वजूद की 'जानाँ' ये फटा दिल का बादबान पड़ा