पेड़ ऊँचा है मगर ज़ेर-ए-ज़मीं कितना है लब पे है नाम-ए-ख़ुदा दिल में यक़ीं कितना है हम ने तो मूँद लीं आँखें ही तिरी दीद के बाद बुल-हवस जानते हैं कोई हसीं कितना है देखता है वो मुझे लुत्फ़ से गाहे गाहे आँकता है कि ग़नी ख़ाक-नशीं कितना है एक तख़्ईल के जंगल पे तसर्रुफ़ था प अब ये इलाक़ा भी मिरे ज़ेर-ए-नगीं कितना है तुम ने किस शख़्स की तस्वीर बनाई है 'सुहैल' रंग कितना है कहीं और कहीं कितना है