पेशानी-ए-हयात पे कुछ ऐसे बल पड़े हँसने को दिल ने चाहा तो आँसू निकल पड़े रहने दो मत बुझाओ मिरे आँसुओं की आग इस कश्मकश में आप का दामन न जल पड़े हँस हँस के पी रहा हूँ इसी तरह अश्क-ए-ग़म यूँ दूसरा पिए तो कलेजा निकल पड़े 'नश्तर' वो अहल-ए-इश्क़ भी हैं कितने तंग-नज़र उन की ज़बान नाम मिरा सुन के जल पड़े