सुराग़-ए-जादा-ओ-मंज़िल अगर नहीं मिलता हमें कहीं से जवाज़-ए-सफ़र नहीं मिलता लिखें भी दश्त-नवर्दी का कुछ सबब तो क्या ब-जुज़ कि क़ैस को लैला का घर नहीं मिलता यहाँ फ़सील-ए-अना हाइल-ए-मसीहाई वहाँ वो लोग जिन्हें चारागर नहीं मिलता हज़ार कूचा-ए-निकहत में डालिए डेरे मगर वो फूल सर-ए-रहगुज़र नहीं मिलता फिर आबियारी-ए-नख़्ल-ए-सुख़न नहीं होती दिल-ए-हज़ीं जो पस-ए-चश्म-ए-तर नहीं मिलता पयाम-ए-शौक़ को गीतों में ढालिए क्यूँ-कर मिज़ाज-ए-बाद-ए-सुबुक भी अगर नहीं मिलता चलो कि फिर से रफ़ीक़ों की बज़्म सूनी है चलो कि संग-ए-मलामत को सर नहीं मिलता बशर-ब-नाम-ए-बशर तो बहुत हैं दुनिया में बशर की ख़ूबियों वाला मगर नहीं मिलता चलो फिर उस के झरोके में फूल रख आएँ सुख़न कोई जो अगर मो'तबर नहीं मिलता जहाँ में एक तुम्ही मुनफ़रिद नहीं 'अहमद' यहाँ तो कोई भी मिस्ल-ए-दिगर नहीं मिलता