पेश-ख़ेमा ये किसी एक मुसीबत का नहीं दुख है कुछ और मिरी जान मसाफ़त का नहीं हम मज़ाफ़ात से आए हुए लोगों का मियाँ मसअला रिज़्क़ का होता है मोहब्बत का नहीं जिस्म की जीत कोई जीत नहीं मेरे लिए ये वो सामान है जो मेरी ज़रूरत का नहीं थोड़ी कोशिश से ही आ जाती है अब नींद मुझे इस का मतलब है कि वो मेरी तबीअत का नहीं ये तो ख़ुद चल के निशाने पे लगे हैं तेरे दख़्ल इस में तो कोई तेरी महारत का नहीं रोज़ दरिया में जो इक फूल बहा देता हूँ ये किसी दुख का इशारा है अक़ीदत का नहीं हम हैं हारे हुए लश्कर के सिपाही 'साहिर' फ़ाएदा हम को किसी की भी हिमायत का नहीं