फिर एहतिमाम-ए-तालेअ'-ए-ना-साज़गार है फिर इम्तिहान-ए-गर्दिश-ए-लैल-ओ-नहार है फिर दिल-नशीं है शेवा-ए-रुस्वाई आह-आह फिर हाए हाए रूह रग-ए-इंतिज़ार है ज़ब्त-ए-वफ़ा का फिर ये तक़ाज़ा कि हाँ ख़मोश लब पर है फिर ये उज़्र कि दिल बे-क़रार है टपका रही है रंग-ए-जुनूँ फिर हवा-ए-शौक़ मौज-ए-ग़ुबार फिर रग-ए-अब्र-ए-बहार है फिर नक़्श-ए-यास बोल उठा ऐ ख़ुशा-फ़रेब दस्त-ए-हवस में ख़ामा-ए-जादू-निगार है सुन लो पुकारे कहती है फिर मस्ती-ए-ख़याल कह दो नवेद-ए-वा'दा-ए-दीदार-ए-यार है ख़ाकिस्तर-ए-ख़याल से चमके शरार-ए-शौक़ फिर इंतिज़ार-ए-जुम्बिश-ए-दामान-ए-यार है फिर जोश-ए-ख़्वाब-ए-बख़्त-ए-सियह के फिरे हैं दिन फिर मैं हूँ और फ़साना-ए-शब-हा-ए-तार है बे-रंगियों में जल्वा-ए-सद-रंग देखना ख़्वाब-ए-अदम भी आइना-ए-इन्तिज़ार है सब कुछ सही 'वफ़ा' मगर इतना भी सोच लो आलम तिलिस्म-ए-आइना-ए-ए'तिबार है