फिर हमें दीदा-ए-तर याद आया फिर हमें नूर-ए-सहर याद आया हुस्न-ए-ख़त सर-ब-मोहर याद आया शक़ हुआ जिस के इशारे से क़मर आज वो रश्क-ए-क़मर याद आया सोज़-ए-दिल बन गया परकाला-ए-इश्क़ शो'ला-बर-दोश जिगर याद आया देखने से तुझे ऐ शम-ए-हरम शब-ए-इसरा का सफ़र याद आया अश्क रुख़्सार पे ढलने से तिरे हम को ताबिंदा-गुहर याद आया क्यों ज़ुलेख़ा के क़रीं यूसुफ़ को शाहिद-ए-ग़ैब का दर याद आया शामिल-ए-फ़िक्र-ए-सुख़न हो 'नसरीन' नामा-बर कोई अगर याद आया