फिर मुझे हर सितम गवारा है आप कह दें कि तू हमारा है मुल्तफ़ित आप भी हुए हैं आज जब मुझे मौत ने पुकारा है मौत जब ज़िंदगी से बेहतर थी हम ने वो वक़्त भी गुज़ारा है तुम मुझे ग़ैर क्यों समझते हो अब मिरा हर-नफ़स तुम्हारा है मुद्दतों ग़म को राज़ में रक्खा अब तो ये राज़ आश्कारा है डूब जाएँगे डूबने वाले एक तिनके का क्या सहारा है तुम ही याद आए हो मुसीबत में जब पुकारा तुम्हें पुकारा है तुम अगर मय पिलाओ आँखों से तल्ख़ी-ए-ज़ीस्त भी गवारा है ऐ 'शिफ़ा' दोस्त से नहीं शिकवा हम को अपनी वफ़ा ने मारा है