फिर तिरे ओछे ख़यालात ने दिल तोड़ दिया तंज़ में डूबे ख़िताबात ने दिल तोड़ दिया लब-कुशाई की ज़रूरत थी तो ख़ामोश रहे बे-सबब रम्ज़-ओ-इशारात ने दिल तोड़ दिया मैं तो अब लफ़्ज़-ए-मोहब्बत से लरज़ उठता हूँ तेरी इस दर्जा इनायात ने दिल तोड़ दिया मैं समझता था तिरे दिल में मकीं हूँ लेकिन तेरे अंदाज़-ए-मुदारात ने दिल तोड़ दिया तेरी ग़ज़लों में नए दौर के उस्लूब नहीं तेरे फ़र्सूदा ख़यालात ने दिल तोड़ दिया मुस्तक़िल कौन तिरा साथ निभाएगा यहाँ एक दो पल के तिरे साथ ने दिल तोड़ दिया आप की ज़ात से थी मुझ को तसल्ली की उमीद आप के अश्कों की बरसात ने दिल तोड़ दिया वो मिरा दोस्त भी हो सकता है जानी दुश्मन क्या बताऊँ मिरे ख़दशात ने दिल तोड़ दिया जिन से हो जाती है ईमान से दूरी 'अजमल' ऐसे अफ़्कार-ओ-नज़रियात ने दिल तोड़ दया