पलट के मिलने का वा'दा करे तो रुक जाऊँ ज़रा सी तेरी मोहब्बत मिले तो रुक जाऊँ ख़याल-ओ-ख़्वाब की दुनिया से तुम निकल आओ हक़ीक़तों का कोई दर खुले तो रुक जाऊँ अजब सफ़र है कि सामान-ए-दिल-लगी भी नहीं तिरे बदन की हरारत मिले तो रुक जाऊँ तिरे सिवा नहीं कोई भी चारासाज़ मिरा फ़साना-ए-ग़म-ए-दिल तू सुने तो रुक जाऊँ मैं नफ़रतों के अंधेरे में हूँ क़याम-पज़ीर तुम्हारे प्यार का सूरज उगे तो रुक जाऊँ हर एक सम्त है 'अजमल' अदावतों का समाँ वफ़ा ख़ुलूस का दरिया बहे तो रुक जाऊँ