फूल से होंट नहीं झील सी आँखें भी नहीं आज पहलू में तिरी मरमरीं बाहें भी नहीं ख़्वाब टूटे तो मैं बीनाई भी खो बैठा हूँ यूँ तुझे खोया कि अब ज़ेहन में यादें भी नहीं हाथ छूटे तो हुआ हाल ये महरूमी का अब मिरे हाथों में क़िस्मत की लकीरें भी नहीं तू नहीं है तो है बे-रंग शफ़क़ शाम उदास और पहले सी महक आज हवा में भी नहीं वक़्त कटता ही नहीं सिर्फ़ गुज़र जाता है सुब्ह सी सुब्हें नहीं रात सी रातें भी नहीं