तेरे साँचे में ढला तेरा ही साया हुआ मैं देखते देखते ख़ुद से ही पराया हुआ मैं याद है अब भी मिरे लम्स से पिघली हुई तू और तिरे साँसों की ख़ुशबू में नहाया हुआ मैं चाक तेरा है तिरी मिट्टी तिरी कूज़ा-गरी जो भी हूँ जैसा भी हूँ तेरा बनाया हुआ मैं राह-ए-उल्फ़त में ये शोहरत है कहाँ सब को नसीब एक मजनूँ था जो मशहूर हुआ या हुआ मैं ढूँढ ही लेता हूँ दुख में भी ग़ज़ल के मौज़ूअ' तेरी फ़ुर्क़त का तिरे ग़म का सताया हुआ मैं सब के होंटों पे हैं ग़ज़लें जो तिरे नाम लिखीं इक तिरे नाम से हूँ बज़्म में छाया हुआ मैं