फूल उस का इस्तिआरा था कभी रंग-ओ-बू को इक सहारा था कभी बारिशें कहती हैं बीता कल मिरा ये समंदर पारा-पारा था कभी वक़्त ने की अहमियत कम वक़्त की ये ज़रा सा कितना सारा था कभी चार दिन भरपूर जी और फिर बता क्या गुज़ारे पर गुज़ारा था कभी अब जो आया है मैं उस से क्या कहूँ मैं ने किस किस को पुकारा था कभी आज भी जीता हूँ बस ये सोच कर उस ने सब कुछ मुझ पे हारा था कभी छुट गया सब कुछ पर इतना याद है क्या नहीं था क्या हमारा था कभी कम-नज़र हर दौर में कहते हैं ये क्या नज़र थी क्या नज़ारा था कभी आसरा पाता रहा जितना 'अमित' क्या तू इतना बे-सहारा था कभी