फूलों की बरसात हुई है और कुछ पत्थर आए हैं इस बस्ती में हम दीवाने सोच समझ कर आए हैं हक़ ने शायद बातिल की बै'अत से फिर इंकार किया आज सुना है बाज़ारों में नेज़ों पर सर आए हैं मयख़ाने में शैख़-ए-हरम को देखा तो मौजूद मिले किस में दम है पूछ सके क्यों आप यहाँ पर आए हैं चंद क़दम पर बैठ गए थक कर मंज़िल के शैदाई चेहरे से ऐसा लगता है मीलों चल कर आए हैं सहरा सहरा घूम रहे थे ताबीरों के चक्कर में बिखरे हुए सब ख़्वाब मिले हैं लौट के जब घर आए हैं उस की अना ने प्यास के आलम में मरना मंज़ूर किया वर्ना उस के होंटों तक ख़ुद खिंच के समुंदर आए हैं ग़ैर-शुऊरी तौर पे उन के लब पे मिरे अशआ'र रहे ख़बर मिली है 'नाज़िम' ऐसे मौक़ा अक्सर आए हैं