पी रहा हूँ कि हक़ीक़त ये फ़रामोश नहीं अहल-ए-दिल के लिए इक हादिसा है होश नहीं निगह-ओ-दिल से मिरे बच के समा जा मुझ में मैं ख़ुद आग़ोश हूँ मेरा कोई आग़ोश नहीं न हटा साग़र-ए-गुल-रंग लबों से मेरे तुझ को तो होश है साक़ी जो मुझे होश नहीं सच तो ये है निगह-ए-नाज़ तिरे सर की क़सम मिट के भी दिल तिरे एहसाँ से सुबुक-दोश नहीं आज समझा तिरी मस्ताना निगाहों के निसार होश कहते हैं जिसे अस्ल में वो होश नहीं मेरे आग़ोश-ए-मोहब्बत में न आने वाले क्या है दुनिया अगर आग़ोश ही आग़ोश नहीं कब नहीं दिल में मिरे कश्मकश-ए-वस्ल-ओ-फ़िराक़ कब वो आग़ोश में बेगाना-ए-आग़ोश नहीं वो भी चाहें तो जुदा हो नहीं सकते 'बासित' दिल मिरा दिल है किसी और का आग़ोश नहीं