पिघलती शम्अ से मैं ख़ुद को बे-ख़बर कर लूँ ग़ज़ल को फ़िक्र की हिद्दत से मो'तबर कर लूँ सफ़र तवील है लेकिन यूँ मुख़्तसर कर लूँ मैं अपनी दूरी-ए-मंज़िल को हम-सफ़र कर लूँ फ़ुसून-ए-शब को निगाहों से मुत्तसिल कर के हुदूद-ए-ख़्वाब को वाबस्ता-ए-सहर कर लूँ फ़लक पे चाँद सितारे हसद से जलते हैं मैं अपनी क़ुव्वत-ए-पर्वाज़ मुख़्तसर कर लूँ