पिला दे हक़ीक़त का इक जाम साक़ी मैं लेता रहूँगा तिरा नाम साक़ी इधर भी निगाह-ए-करम हो ख़ुदा-रा कि हूँ आफ़्ताब-ए-लब-ए-बाम साक़ी घटा-टोप तारीकियाँ चार-सू हैं सहर है मिरे वास्ते शाम साक़ी गुनाहों के दरिया में खाता हूँ ग़ोते नहीं एक पल मुझ को आराम साक़ी मुझे अपनी आग़ोश-ए-रहमत में ले ले सुना है तिरा फ़ैज़ है आम साक़ी मैं आया हूँ ले कर तिरे मय-कदे में तमन्ना-ए-दुर्द-ए-तह-ए-जाम साक़ी सुना दे ज़माने को तू अज़-सर-ए-नौ उख़ुव्वत का इस्लामी पैग़ाम साक़ी अजब क्या बना दे तू इस को निको-नाम ये सच है कि 'मज़हर' है बदनाम साक़ी