है क्या मज़ा जुनूँ में दीवाना बन के देखो जलने में लुत्फ़ क्या है परवाना बन के देखो ज़ाहिद बुरा न मानो दो-चार जाम पी लो मस्ती में क्या मज़ा है मस्ताना बन के देखो गुमनामियों में गुज़री उम्र-ए-अज़ीज़ सारी महफ़िल में आ के बैठो अफ़्साना बन के देखो छोड़ो भी जम के क़िस्से माज़ी से क्या हो चिमटे ऐ जाम-ए-जम हमारा पैमाना बन के देखो ज़ुल्मत-कदा तुम्हारा ऐ दिल है सूना सूना इक शम-ए-अंजुमन का काशाना बन के देखो शादाबियों से अपनी ऐ गुल्सिताँ मिला क्या अब के बहार में तुम वीराना बन के देखो दुनिया को देख डाले तुम दोस्त बन के बरसों अब चंद रोज़ 'मज़हर' बेगाना बन के देखो