पीते हैं मय गुनाह ब-क़स्द-ए-सवाब है मस्ती के वलवले हैं ज़मान-ए-शबाब है ऐ चारागर नदामत-ए-बे-जा न लीजियो दिल चाक हो चुका है जिगर आब आब है ज़ाहिद मुआ'फ़ ज़ब्त-ए-तबीअ'त नहीं हमें साग़र छलक रहे हैं हवा-ए-शबाब है बेदारियाँ हैं दीदा-ए-ज़ंजीर की तरह वो आँख है अज़ल से जो महरूम-ए-ख़्वाब है ऐ शोर-ए-हश्र ठहर कि फ़ुर्सत नहीं हमें हैं ग़फ़लतों के जोश जवानी का ख़्वाब है ऐ शैख़ तूल-ए-रीश-ए-मुक़द्दस घटाइए हद से ज़ियादा जो है उसी पर अज़ाब है ऐ बे-ख़बर क़रीब है फ़र्दा-ए-बाज़-पुर्स हुशियार हो कि जल्द ज़मान-ए-हिसाब है देखा निगाह-ए-ग़ौर से हम ने जो ऐ 'नसीम' हर शे'र इस ग़ज़ल का तिरी इंतिख़ाब है