पिया के रुख़ की झलक का परतव किया है झलकार आफ़्ताबी नज़र सूँ आलम के हो रही है मिसाल-ए-ख़ुफ़्फ़ाश बे-हिजाबी जिसे वो चहता है मुख दिखाने उसी को है ताब देखने का वही समझ बख़्श मुर्शिद उन का तलब है तूँ माँग जा शिताबी अगर मिले तुझ को चश्म-ए-बातिन वही है मक़्सूद आक़िबत से वगर्ना तहक़ीक़-ए-दो-जहाँ में नहीं है हासिल ब-जुज़ ख़राबी उसी को कहते हैं कोर बातिन जिसे नहीं हैगा दीद उस का न पावेगा वो नजात हरगिज़ अगरचे वो इल्म है किताबी करीम मुर्शिद ने चश्म-ए-बातिन किया नवाज़िश 'अलीम' के तईं वसा हक़ीक़त के घन का ख़ुर्शीद गई निकल कर नज़र सराबी