पूछें तिरे ज़ुल्म का सबब हम इतने तो नहीं हैं बे-अदब हम इल्ज़ाम नहीं है फ़स्ल-ए-गुल पर ख़ुद अपने जुनूँ का हैं सबब हम साहिल पे सिवाए ख़ाक क्या था ग़र्क़ाब हुए हैं तिश्ना-लब हम करते हैं तलाश-ए-आदमिय्यत दुनिया में हैं आदमी अजब हम फ़ुर्सत हो तो आ के देख जाओ मुद्दत से पड़े हैं जाँ-ब-लब हम बाहर से हैं मोमिन-ए-सरापा इन्दर से तमाम बू-लहब हम हर शाख़ पे गुल खिले हुए थे गुलशन से 'सबा' चले थे जब हम