पूछते हैं सब हम से दिल लुटा के क्या पाया ग़म सा गौहर-ए-यकता तुम सा दिलरुबा पाया वहशत और सूना-पन अपनी ज़ात-ए-तन्हाई आज मय-कदे को भी ख़ाना-ए-ख़ुदा पाया तुम को खो के हम ने तो ग़म की दौलतें पा लीं हम को खो के पर तुम ने ये बताओ क्या पाया सैकड़ों की जाँ छूटी तेरी तेग़ तो टूटी हम को सर का ग़म ही क्या हम ने ख़ूँ-बहा पाया ऐ 'हसन-कमाल’ आख़िर ये भी क्या भला कम है बे-हिसी की दुनिया में दिल दुखा हुआ पाया