पूछते क्या हो मिरे तुम दिल-ए-दीवाने से इश्क़ के रम्ज़ को पूछो किसी फ़रज़ाने से जी निकल जावेगा ज़ालिम मिरा अब जाने से याँ न आना ही भला था तिरे इस आने से रोज़ के दुख से छटा रात के जलने से रहा दोस्ती शम्अ ने की दोस्तो परवाने से दिल बजा लावेगा जो कुछ इसे कीजे इरशाद ये तो बाहर नहीं कुछ आप के फ़रमाने से यूँ यकायक जो हुए उस के जिगर के टुकड़े नहीं मालूम कहा ज़ुल्फ़ ने क्या शाने से ज़ब्त लाज़िम है जब ही तक कि न हो आँख में अश्क अब तो भर आया है दिल अश्क के भर आने से रो ले दिल खोल के तू इस घड़ी 'आसिफ़' अपना नहीं घुट जावेगा दम अश्क के पी जाने से