पुराना दोस्ताना चाहते हैं इन आँखों का ठिकाना चाहते हैं नहीं चाहत का कोई भी गुज़र पर तुम्हें हम याद आना चाहते हैं उन्हें चाहत का कोई ढब नहीं जो मोहब्बत आज़माना चाहते हैं अंगारे भर के चश्म-ए-आरज़ू में सितारे शब जलाना चाहते हैं लगी दिल की बुझानी है हमें सो वजूद-ए-हिस मिटाना चाहते हैं किसे दीवानगी से वास्ता है यहाँ तो सब दिवाना चाहते हैं है दिल-बस्ती के बाशिंदों से शिकवा सो ये बुनियाद ढाना चाहते हैं उन्हें मेरी क़ज़ा की इत्तिलाअ' हो सुना है लौट आना चाहते हैं