पुराने जितने बचे थे बहा दिए आँसू नए हैं ग़म हैं नए ज़ख़्म हैं नए आँसू जो दिल पे ज़ुल्म की हद हो निकल पड़े आँसू पलक पे बोझ जो बढ़ जाए तब गिरे आँसू फिर आ गए हैं जो आँखों में तो करेंगे ही तमाम ज़ख़्म मिरे दिल के फिर हरे आँसू मिरे लिए वो कम-अज़-गौहर-ए-नशात नहीं मिरे लिए हो तो बेकार क्यों बहे आँसू न तेरे जैसी दुल्हन होगी फिर रमाने में जो तेरी पलकों पे आ जाए और सजे आँसू मुसाफ़िरों की थकन के लिए थे ख़ाना-ए-चश्म मुसाफ़िरों की तरह आए और गए आँसू नज़र जमाए हुए है वो तेरी आँखों पर तू अपनी आँख के अंदर समेट ले आँसू हँसी वो शय कि लबों में दबे तो छुप जाए उबल के आता है आँखों में गर दबे आँसू जुदा हो ख़ार से गुल या हो गुल से ख़ार जुदा निकाल फेंको अगर आँख में चुभे आँसू