पुरानी मिट्टी से पैकर नया बनाऊँ कोई दिन आ गए हैं कि अब मोजज़ा दिखाऊँ कोई पुकारते हैं उफ़ुक़ ख़ाक बे-सिफ़ात हुई ज़मीन से शजर-ए-आफ़्ताब उगाऊँ कोई असा बुलंद करूँ सर-कशीदा लहरों पर फ़सील-ए-आब उठाऊँ हवा चलाऊँ कोई सियाहियों में छुपे हैं दिलों के आईने कहीं से परतव-ए-गुम-गश्ता ढूँड लाऊँ कोई तराश लूँ कोई जुमला लब-ए-ख़मोशी से चराग़-ए-हर्फ़ सर-ए-ताक़-ए-शब जलाऊँ कोई ग़ुबार-ए-रंग में भटकी हुई हैं ख़ुशबूएँ हवा का हाथ बनूँ रास्ता दिखाऊँ कोई ज़मीं से लौह-ए-फ़लक तक हुजूम-ए-चश्म-ओ-सदा बिखर चुका हूँ बहुत दायरा लगाऊँ कोई