मैं भाग के जाऊँगा कहाँ अपने वतन से जीता हूँ मसाइब की बक़ा मेरे लिए है सच बोलने वाले को डराते हो सितम से रुक जाओ ठहर जाओ जज़ा मेरे लिए है अफ़्सोस कटी उम्र कुतुब-ख़ानों में लेकिन ये वुसअत-ए-सहरा ये फ़ज़ा मेरे लिए है में राह-ए-यगाना पे हमेशा से चला हूँ रुस्वाई तबाही तो सदा मेरे लिए है मुजरिम हूँ कि फ़ाशिज़्म के साए में हूँ जीता 'बाक़र' को बचा लो ये सज़ा मेरे लिए है