पुर-कैफ़ ज़ियाएँ होती हैं पुर-नूर उजाले होते हैं जब ख़ाक-बसर दिल होता है और अर्श पे नाले होते हैं हँसते हैं दहान-ए-ज़ख़्म से हम गाते हैं फ़ुग़ाँ के बरबत पर आशुफ़्ता-सरों की दुनिया के सब ढंग निराले होते हैं क्या क़हर बरसता है दिल पर सावन की शबों में क्या कहिए कुछ दर्द की फुवारें होती हैं कुछ यास के झाले होते हैं इन उजड़े हुए अरमानों को किस शौक़ से दिल ने सींचा था बरबाद मगर होते हैं वही जो नाम के पाले होते हैं चाहत के सितम बर्दाश्त करें मर मर के जिएँ और मर न सकें क्या जानिए किस मिट्टी के बने ये चाहने वाले होते हैं दिल तंग न हो ऐ रह-रव-ए-ग़म काँटों के लिए तो कम से कम मानिंद-ए-नवेद-ए-अब्र-ए-करम ये पाँव के छाले होते हैं उफ़-रे वो नज़ाकत लहजे की बातें जो निकलती हैं मुँह से या चाँद की किरनें होती हैं या बर्फ़ के गाले होते हैं ये दर्द-ए-जुनूँ ये सोज़-ए-जिगर इन कैफ़ियतों के गिर्द 'अख़्तर' तस्ख़ीर के हल्क़े हों कि न हों तक़्दीस के हाले होते हैं