क़सम इन आँखों की जिन से लहू टपकता है मिरे जिगर में इक आतिश-कदा दहकता है गुज़िश्ता काहिश ओ अंदोह के ख़याल ठहर मिरे दिमाग़ में शोला सा इक भड़कता है किसी के ऐश-ए-तमन्ना की दास्ताँ न कहो कलेजा मेरी तमन्नाओं का धड़कता है इलाज-ए-'अख़्तर'-ए-ना-काम क्यूँ नहीं मुमकिन अगर वो जी नहीं सकता तो मर तो सकता है