पुतलियों पर तिरे चेहरे को बनाया हुआ है सामने आँख के यूँ तुझ को सजाया हुआ है दर-ओ-दीवार-ए-तमद्दुन को गिराया जिस ने हाए वो हश्र हमारा ही उठाया हुआ है अपनी पर्वाज़ पे नाज़ाँ जो उड़ा फिरता है वो परिंदा भी हमारा ही उड़ाया हुआ है दो-घड़ी आँख लगा लो करो एहसाँ उन पर तुम ने ख़्वाबों को कई दिन से जगाया हुआ है ज़ोर टूटेगा हवा का तो कहाँ जाएगा जिस ग़ुबारे को फ़ज़ाओं में उड़ाया हुआ है मेरे चिल्ले की रियाज़त का समर देख ज़रा अपने हम-ज़ाद को पहलू में बिठाया हुआ है