सो के पत्थर पे कभी देख कि सोना क्या है ताकि मा'लूम तुझे हो ये बिछौना क्या है मेरी तन्हाई किसी रोज़ जो मुझ से खेले ऐन-मुमकिन है समझ जाऊँ खिलौना क्या है बीज कोई भी हो वो जड़ तो पकड़ ही लेगा तय ये करना है कि नम ख़ाक में बोना क्या है यूँ न होने पे मिरे तुझ को न हैरत होगी मैं अगर तुझ को बता दूँ कि ये होना क्या है ज़िक्र-ए-वहशत में अगर टूट गिरी है 'फ़ाएज़' छोड़ तस्बीह के दानों को पिरोना क्या है