प्यार करती है मगर फिर भी मुकर सकती है क्या भरोसा है किसी और पे मर सकती है क्या समझती हो कि बाँधा है मुझे बंधन में ये अँगूठी है मिरी जान उतर सकती है छूट सकती है तिरे गाँव की मिट्टी मुझ से ये क़यामत भी किसी रोज़ गुज़र सकती है चाँद ने झील के बिस्तर पे जो करवट बदली चाँदनी टूट के पानी में बिखर सकती है हम ने बस प्यार किया नाम लिखे सोचा नहीं डाइरी पेड़ की बदनाम भी कर सकती है अहद-ए-कम-फ़हम की उजलत है इशारा 'राहिब' रौशनी चाक पे ज़ुल्मत को भी धर सकती है