प्यार किया था तुम से मैं ने अब एहसान जताना क्या ख़्वाब हुईं वो प्यार की बातें बातों को दोहराना क्या राह-ए-वफ़ा है हम-सफ़रो पुर-अज़्म रहो हाँ तेज़ चलो चार क़दम पे मंज़िल है अब राह से वापस जाना क्या संग-ज़नी ओ त'अना-ज़नी इस दौर का शेवा है यारो अपने दिल में खोट नहीं जब दुनिया से घबराना क्या मय-ख़ाने में दौर चले मैं इक इक बूँद को तरसा हूँ साक़ी भी है मेरी नज़र में शीशा क्या पैमाना क्या मेरे दिल को तोड़ के आख़िर क्या खोया क्या पाया है शहर-ए-सनम में रहने वालो शीशे से टकराना क्या बस्ती बस्ती पर्बत पर्बत वहशत की है धूप 'ज़िया' चारों जानिब वीरानी है दिल का इक वीराना क्या