प्यास बिखरी हुई है बस्ती में और समुंदर है अपनी मस्ती में कितना नीचे गिरा लिया ख़ुद को आप ने शख़्सियत परस्ती में क्यूँ करें हम ज़मीर का सौदा हम बहुत ख़ुश हैं फ़ाक़ा-मस्ती में कल बुलंदी पे आ भी सकते हैं ये जो बैठे हैं आज पस्ती में सूफियाना मिज़ाज है अपना मस्त रहते हैं अपनी मस्ती में