प्यासी धरती माँग रही है जग के दाता पानी दे सागर सागर जल-थल कर दे दरिया दरिया पानी दे तू ही अव्वल तू ही आख़िर तू ही रब तू ही मा'बूद दुनिया की हर एक बड़ाई तुझ को ज़ेबा पानी दे हर रंगत में तेरी ख़ुशबू हर ख़ुशबू में तेरा रंग ज़र्रा ज़र्रा नहीं किसी का सब कुछ तेरा पानी दे तुझ को तो मालूम है तेरे बंदों की हाजत क्या है अपनी इस मख़्लूक़ पे थोड़ी शफ़क़त फ़रमा पानी दे जाने कितने हाथ उठे हैं तेरी जानिब हसरत से इन हाथों की लाज बचा ले रहम-सरापा पानी दे सावन तो प्यासी धरती पर आग जला कर चला गया कम से कम भादों ही कर दे दामन गीला पानी दे फूलों से पाकीज़ा चेहरे शबनम से मासूम बदन ख़्वाबों से नाज़ुक सायों को और न तरसा पानी दे तूफ़ानी सैलाब से हट कर सूखे मौसम से कुछ दूर जितनी गहरी प्यास हो जिस की उस को उतना पानी दे हम तो तुझ को भुला चुके हैं भूल न लेकिन तू हम को प्यासी है 'पर्वाज़' ये दुनिया रहमत बरसा पानी दे