क़फ़स निगल गया किसी को दार ने निगल लिया मगर हमें शब-ए-फ़िराक़-ए-यार ने निगल लिया तुम्हारे वास्ते हुज़ूर हादिसा है और बस ग़रीब घर के आसरे को कार ने निगल लिया हज़ार बार तुझ से ये कहा था मत हिसाब कर हमारे प्यार को मियाँ शुमार ने निगल लिया हमी प्रेम चँद की कहानियों के लोग हैं वो लोग जिन की उम्र को उधार ने निगल लिया वो जिन को ख़ुद पे मान था किसी का रिज़्क़ हो गए शिकारियों को एक दिन शिकार ने निगल लिया हमारे ग़म ग़ज़ल हुए तो गुनगुना दिए गए उदासियों के बैन को गिटार ने निगल लिया तुम्हारे बाद हम 'हसन' ख़िज़ाँ के हाथ लग गए हमारे सब्ज़ जिस्म को बहार ने निगल लिया