क़फ़स से ख़ुद ही परिंदा रिहा किया मैं ने फिर उस के बाद ये सोचा कि क्या किया मैं ने वो और भी किसी चश्म-ए-कमाँ की ज़द पर था कुछ इस लिए भी निशाना ख़ता किया मैं ने कई जहान नज़र आए हैरतों के मुझे ख़ुद अपनी सम्त दरीचा जो वा किया मैं ने जो दर्द तू ने दिया तेरे इख़्तियार में था वो ज़ब्त जो मिरे बस में न था किया मैं ने वो आँखें माँगने आया तो मेरी आँख खुली उसे ख़िराज में क्या क्या अदा किया मैं ने