शो'लों के दरमियाँ भी नहीं था मुझे हिरास और इस के बा'द क्या हुआ बस कीजिए क़यास अपना सुनहरी साल और अपने रू-पहले बाल या'नी कि हो गई है मिरी उम्र अब पचास अपने लहू की गर्मी ही सब कुछ है दोस्तो अब जिस के बा'द कुछ भी नहीं ऊन या कपास इतनी बहुत सी बातों से वो ख़ुश न हो सका इतनी ज़रा सी बात से वो हो गया उदास लय दूसरी भी छेड़ मगर थोड़ी देर बा'द मैं जम्अ' करता हूँ अभी खोए हुए हवास उस इक हसीन जिस्म को देखा तो यूँ लगा पहना था जैसे ताज-महल ने भी इक लिबास